Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र | ०७
भावार्थ
१०१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भवग्गहणाई उक्कोसेणं अणंताई भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहणेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं अनंतं कालं एवइयं जात्र करेजा ॥ सेसा पंचगमा अट्ठ भवग्गहणिया, तव वरं ट्टिई संवेहं च जाणेज्जा ॥ सेवं भंते! भंतेत्ति ॥ चउवीसइम सयस्स सोलसमो ॥ २४ ॥ १६॥
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'वेइंदियाणं भंते! कओहिंतो उववजंति जाव पुढवीकाइएणं भंते! जे भविए वेइंदि - एस उववज्जित्तए सेणं भंते ! केवइ, सव्वेव पुढवीकाइयस्स लडी जाव कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ता उक्कोसेणं संखेज्जं कालं एवइयं जाव करेजा ॥ एवं ते सुचेत्र पांचवा गमा में प्रत्येक समय में विरह रहित अनंत उत्पन्न होते हैं. अनंत भव. कालादेश से अघन्य दो अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट अनंत काल
भवादेश से जघन्य दो भव उत्कृष्ट इतना यावत् करे. शेष पांच गया
आठ भववाले हैं परंतु स्थिति और संबंध वनस्पति का जानना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं.
यह चौवीसवा शतक का सोलहवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २४ ॥ १६ ॥
अहो भगवन् ! बेइन्द्रिय कहां से उत्पन्न योग्य होवे तो कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ?
होते हैं ? यावत् पृथ्वी काया बेइन्द्रिय में उत्पन्न होने सब पृथ्वीकाया की लब्धि जैसे कहना. यावत् कालादेश
*काशक राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
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