Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
अत्तराई वेराइदिय सयाई, वेईदिएहिं सम तइयगंमे, उक्कोसेणं अडपालीसं संवछराई छण उराईदिय सत्तमम्भहियाई तेईदिएहिं समं तइय गमे उक्कोसेणं वाणुचराई तिण्णि इंदियाई, एवं सव्वत्थ जाणेज्जा जाव सण्णिमणुस्संति ॥ सेवं भंते! भंतेति ॥ चवीसइमसयस्स अट्ठारसमो ॥ २४ ॥ १८ ॥
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उरिंदियाणं भंते ! कओहिंतो उववज्जति जहा तेइंदियाणं उद्देसओ तहा चाउरिंदि - याणवि वरं ठिति संबेहं च जाणेजा सेवं भंते ! भंतेति ॥ चउसइम सयस्स गुणीसमो उद्देसो सम्मत्तो ॥ २४ ॥ १९ ॥
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* प्रकाशक - राजा बहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
(दिन, बेइन्द्रिय की साथ तीसरा गमा में उत्कृष्ट अडतालीस वर्ष बेइन्द्रिय आश्री और १९६ रात्रि दिन { अधिक. तेइन्द्रिय में से उत्पन्न होवे तो तीसरा गया में उत्कृष्ट ३९२ रात्रि दिन ऐसे ही सर्वत्र जानना. यावत् संज्ञी मनुष्य. अहो भगवन् ! आपके बचन सत्य हैं. यह चौवीसा शतक का अठारहवा उद्देशा) संपूर्ण हुवा || २४ ॥ १८ ॥
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उद्देशा कहा वैसे
अहो भगवन् ! चतुरेन्द्रिय कहां से उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! जैसे तेइन्द्रिय का } ही चतुरेन्द्रिय का उद्देशा कहना. परंतु स्थिति और संबंध चतुरेन्द्रिय अनुसार कहना. अहो भगवन् ! आपके वचन सत्य हैं. यह चौबीसवा शतक का उन्नीसवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २४ ॥
१९ ॥
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