Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अंगुलस्स असखेजइ भागं, उक्कोसेणं सत्तरयणीओ, तत्थणं जा सा उत्तरवैउब्विया, 4 सा जहण्णेणं अंगुलस्स असखेजइ भागं उक्कोसेणं जोअणसयसहस्सं ॥ तेसिणं भंते ! जीवाणं सरीरगा किं संठिया पण्णत्ता ? गोयमा ! दुविहा पण्णत्ता, तंज़हा-भवधारणिज्जाय, उत्तवेउब्वियाय, ॥ तत्थणं जे ते भवधारणिज्जा ते समचउरंससंठाण संठिया पण्णत्ता, तत्थणं जे से उत्तरवेउव्विया ते णाणा संठाण संठिया ५० ॥ लेस्साओ चत्तारि ॥ दिट्ठी तिविहावि ॥ तिण्णि णाणा णियम, तिण्णि अण्णाणा
भयणाए ॥ जोगे तिबिहेवि ॥ उवओगे दुविहेवि ॥ चत्तारि सण्णाओ ॥ चत्तारि भावार्थ भाग उत्कृष्ट मात हाथ. उस में जो उत्तर वैक्रेयवाले हैं उसकी जघन्य अंगुलका असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट
एक लाख योजन. अहो भगवन् ! उन को कौनसा संस्थान कहा है ? अहो गौतम ! संस्थान के दो र भेद. भवधारणीय और उत्तरवैकेंय. उस में भवधारणीय का समचतुस्रस्थान और उत्तर :
क्रेय का संस्थान विविध प्रकार का. लेश्याओं चार कहीं, दृष्टि तीन, तीन ज्ञान की भजना तीन अज्ञान oil की रियमा, तीन योग, उपयोग दो, चार कषाय. पांच इन्द्रिय, पांच समुद्धात, दोनों प्रकार की वेदना, 1 स्त्री वेद और पुरुष वेद होते. परंतु नपुंसक वेद नहीं, स्थिति जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट सागरोपम।।
पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र
6. चोवीसदा शतक का धारहवा उद्देशा
4.