Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
वमट्टिईएसु उववजेजा. एसचेव वत्तव्वया, णवरं टिई से जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाइ उ. कोसेणवि तिण्णि षलिओवमाई,एवं अणुबंधोवि कालादेसेणं जहण्णेणं छप्पलिओवमाई उ. कोसेणवि छप्पलिओवमाइं एवइयं सेसंतंचेव॥३॥२३॥सोचेवअप्पणा जहण कालट्ठिईओ जाओ जहणेणं दसवास सहस्सट्टिईएसु उक्कोसेणं, साइरेगं, पुवकोडीआउएसु उववजेजा ॥ तेणं भंते ! अवसेसं तंचेव जाव भवादेसोत्ति णवरं ओगाहणा जहणेणं धणुहपुहुत्तं उक्कोसेणं साइरेगं धणुहसहस्सं । ढिई जहण्णेणं साइरेगा पुवकोडी उक्कोसेणवि साइरेगा पुव्वकोडी ॥ एवं अणुबंधोवि ॥ कालादेसेणं जहण्णेणं साइरेगा और संवेध अमुरकुमार का कहना. यह दूमग़ गमा हुवा ॥२२॥ वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा जघन्य तीन पत्योपम में उत्पन्न होवे वगैरह पूर्वोक्त जैसी वक्तव्यता कहना. स्थिति और अनुबंध भी जघन्य उत्कृष्ट तीन पल्योपम कालादेश से जघन्य उत्कष्ट छ पल्यापम जानना ॥ २३ ॥ वही जघन्य स्थितिवाला नियंच. अमुरकुमारमें उत्पन्न होवे तो जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट साधिक पूर्व क्रोडकी स्थिति से उत्पन्न होवे. शेष बस
भवादेशपर्यंत पूर्वोक्त जैसे कहना.अवगाहनाजघन्य प्रत्येक धनुष्य उत्कृष्ट साधिक एक हजार धनुष्य.स्थिति जघन्यत्र 10 साधिक पूर्व क्रोड उत्कृष्ट साधिक पूर्व क्रोड ऐसे ही अनुबंध. कालादेश से जघन्य साधिक पूर्व क्रोड
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी /
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी -
भावार्थ