Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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29 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अनारक ऋषिजी -
गाउयाई उक्कोसेणवि तिण्णि गाउयाई अवसेसं तंचेव ॥ ९ ॥ ३२ ॥ जइ संखेज - वासाउय सणिमणुस्सेहितो उववज्जति किं पजत्तसंखेज वासाउय अपजत्त संखेज जाव उववजलि ? गोयमा ! पजत्तसंखेजवासा णो अपजत्त संखजवासाउय॥३३॥ पजत्तसंखजवासाउय सण्णिमणुस्सेणं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववजित्तए संणं भंते ! केवतिकालट्ठितीएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णेणं दसवास सहस्स द्वितीएसु उक्कोसेणं सातिरेगं सागरोवमट्टितीएसु उववजेजा ॥ तेणं भंते ! जीवा एवं जहेव एएसिं रयणप्पभाए उववजमाणाणं णवगमगा तहेव इहवि णवगमगा भाणि
वब्वा णवरं संवेहो सातिरेगेण सागरोवमेण कायव्वो ॥ सेसं तंचेव ॥ सेवं भंते २ ! वाले मनुष्य उत्पन्न होते हैं परंतु अपर्याप्त नहीं उत्पन्न होते हैं ॥ ३३ ॥ अहो भगवन् ! पर्याप्त संख्यात वर्ष के आयुष्यवाला मनुष्य असुरकुमार में उत्पन्न होने योग्य होते हैं वे कितनी स्थिति से उत्पन्न होते हैं? अहो गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट एक सागरोपम से कुच्छ अधिक. अहो भगवन् ! एक समय में वे कितने उत्पन्न होते हैं ? वगैरह रत्नप्रभा में उत्पन्न होने के जो नव जमा कहे वैसे ही यहां कहना. विशेष में संवैध अधिक एक सागरोपम कहना. शेष सब वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! आपके
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *