Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) मूत्र
असणिपंचिंदिय तिरिक्ख• जइ असण्णिपंचिंदियतिरिक्खजोणिहितो उववजंति किं जलचरेहिंतो उववजंति, जाव किं पजत्तएहिंतो उववजंति अपजत्तएहितो उववजंति ? गोयमा! पजत्तएहितो उववजंति, अपज्जत्तएहितोवि उववजंति ॥ २४ ॥
२११३ असण्णि पंचिंदिय तिरिक्खजोणिएणं भंते !. जे भविए . पुढवीकाइएसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवइ ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वाबीसं वाससहस्सं ॥ तेणं भंते! जीवा, एवं जहेव वेइंदियस्स ओहि गमए लद्दी तहेव णवरं सरीरोगाहणा . जहण्णेणं, अंगुलस्स असंखेजइ भागं उक्कोसेणं जोअणसहस्सं ॥ पंचिंदिय ट्ठिई अणु
वंधोय जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसणं पुवकोडी सेसं तंचेव ॥ भवादेसेणं जहणेणं यावत् क्या पर्याप्त में से उत्पन्न होवे या अपर्याप्त में से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! पर्याप्त और अप-3. र्याप्त दोनों में से उत्पन्न होवे ॥ २४ ॥ असंही पंचेन्द्रिय जो पृथ्वीकाया में उत्पन्न होने योग्य होवे वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष. अहो भग-13 वन् ! वे एक ममय में कितने उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! जैसे औधिक बेइन्द्रिय का कहा वैसे ही यहां कहना. परंतु शरीर की अवगाहना जपन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट एक हजार पोजन.. |
488चौबीसवा शतकका बारहवा उद्दशा
सारा
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