Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई, कालादेसणं उवांजिऊण भाणियन्वं णवरं मज्झिमएसुतिसु गमएस जहेव वेइंदियस्स मज्झिमएस तिमु गमएसु पच्छिल्लएसु तिसु गमएसु जहा एतस्सेव पढमगमए, गवरं ट्ठिई अणुबंधो जहण्णेणं पुन्चकोडी,
उकोसेणवि पुचकोडी, सेसं तहेव जाव णवगमए. जहण्णेणं पुवकोडी वाबीसाए ॐ वाससहस्सेहिं - अब्भहिया ॥ उक्कोसेणं चत्तारि पुनकोडीओ अट्ठासीतीएय वास
· सहस्सेहिं अम्भहियाओ एवइयं कालं सेवेजा ॥ २५ ॥ जइ सण्णि पंचिंदिय
तिरिक्ख जोणिए उववजंति कि संखजवासाउथ असंखज्जवासाउय ? गोयमा ! संखे भावार्थ इन्द्रिय पाच, स्थिति और अनुबंध जघन्य अंतर्मुहूर्न उत्कृष्ट पूर्व कोड शेप वैसे ही भवादेश से जघन्य दो
#भव उत्कृष्ट बाठ मव. कालादेश उपयोग सहित कहना. परंतु बीच के तीनों गमा में बेइन्द्रिय के बीच के :
तीनों गमा जैसे कहना. पीछे के तीनों गमा उस के पहिले गमा जैसे कहना. परंतु स्थिति और अनुबंध नघन्य व उत्कृष्ट पूर्व क्रोड जानना. यावत् नववा गमा जघन्य पूर्व कोड बावीस हजार वर्ष
आधिक उत्कृष्ट चार पूर्व क्रोड अठासी हजार वर्ष अधिक ॥ २५ ॥ यदि संधी पंचेन्द्रिय में से उत्पन्न होवे 1 सो क्या संख्यात वर्ष के मायुष्यवाले या असंख्यात वर्ष के आयुष्यवाले उत्पन्न होवे ? अहो मौतम !
42 अनुवादक-बालबमचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी 42
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *