Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिजी
अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्साई ॥ अज्झवसाणा पसत्थावि अप्पसत्थावि ॥ अणुबंधो जहा ठिई ॥ सेणं भंते ! पुढवीकाइए पुणरवि पुढवी काइएत्ति केवइयं कालं सेवेज्जा, केवइयं कालं गतिरागतिं करेजा ? गोयमा ! भवादेसणं जहण्णणं दो भवग्गहणाई, उक्कोसेणं असंखेजाइं भवग्गहणाइं ॥ कालादेसेणं जहण्णणं दो अंतोमुहुत्ताई, उक्कोसेणं असंखजं कालं एवइयं जाव करेजा ॥ १ ॥ ३ ॥ सोचव जहण्ण काल ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं अंतोमुहुत्त ठिईएसु, उक्कोसणवि अंतोमुहुत्त ठिईएस, एवंचेब वत्तव्वया गिरवसेसं
॥ २ ॥ ४ ॥ सोचेव उक्कोसकाल ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं वावीस हैं. स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट वावीस हजार वर्ष, अध्यवसाय प्रशस्त अप्रशस्त दोनों, अनुबंध जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष. अहो भगवन् ! वह पृथ्वीकाया पुनः पृथ्वीकायाको कहांतक सेवे और कितनी गति आगति करे ? अहो गौतम ! भवादेश से जघन्य दो भव उत्कृष्ट असंख्यात भव कालादेश से जघन्य दो अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट असंख्यात काल इतना यावत् करे ॥ ३ ॥ वही जघन्य स्थितिबाली पृथ्वी काया में उत्पन्न हुवा जघन्य अंतर्मुहूर्न उत्कृष्ट भी अंतर्मुहूर्त वगैरह पूर्वोक्त वक्तव्यता कहना ॥ ४ ॥ वही उत्कृष्ट स्थिति मे उत्पन्न हुवा जघन्य उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की स्थिति से उत्पन्न होता है. शेष अनु
wwimmmmmmmmm प्रकाशक-राजहादुर लाला सुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावाथे