Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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काइएसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवतिकाल द्वितीएसु ? गोयमा ! जहणेण अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणं वावीसं वाससहस्सटिती ॥ तेणं भंते ! जीवा एगसमएणं ? गोयमा! जहण्णेणं एक्कोवा दोवा सिण्णिवा, उक्कोसेणं संखजावा असंखेजावा उश्वज्जति॥छेवट्ठ संघयणी॥ओगाहणा जहण्णेणं अंगुलस्स असंखेजइ भाग, उक्कोसेणं वारस जोअणाई हुंडसंठिया तिण्णि लेस्साओ ॥ सम्मट्टिी. मिग्छादिट्ठी, णो सम्मामिच्छाहिट्ठी । दो णाणा दो अणाणा णियमं ॥ णो मणजोगी वयजोगीवि कायजोगीवि ॥ उवओगो
दुविहोवि ॥ चत्तारि सण्णाओ॥ चत्तारि कसायाओ ॥ दो इंदिया पं० तंजहा भावार्थ L उत्पन होवे ? अहो गौतम ! पर्याप्त वेइन्द्रिय में से उत्पन्न होवे और अपर्याप्त वेइन्द्रिय में से भी उत्पन्न होवे
अहो भगवन् ! जो बेहन्द्रिय पृथ्वीकाया में उत्पम होने योग्य होवे. वे वहां कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे, अहो गौतम ! जपन्य अंतर्मुहूर्न उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष की स्थिति से उत्पन्न होवे. अहो भगवन् ! वे जीवों एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं ? अहो गौतम ! अघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट संख्यात असं-31
ख्यात उत्पन होबे, संघयण छवटु, अवगाहना जघन्य अंगुल का असंख्यातवा भाग उत्कृष्ट बारह योजन, कक संस्थाम, तीनों लेश्या, समदृष्टि और मिध्यारष्टिौ परंतु सम मिथ्यादृष्टि नहीं, दो ज्ञान दो अज्ञान की।
पंचांग विवाह पण्णति (भगवती) सूत्र 488
___48 चौबीसबा शतकका बारहना उद्देशा कम