Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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२६.८
+ अनुवादक-पालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी +
जिभिदिएय फासिदिएय, तिणि संधीचा ससे जहा पुढवीकाइयाणं नवरं दिई जहणेणं मंतोमुहत्तं उकोसेणं बारस संवच्छराई । एवं अणुबंधोवि सेसं तंचेव ॥ भवादेसेणं जहण्णेणं दोभवग्गहणाई उकोसेणं संखजाई भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं दो अंतोमुहुत्ताइं उक्कोसेणं संखेनं कालं एवइयं कालं ॥ १ ॥ १७ ॥ सोचेव जहण्णकालढिईएसु उवषण्णो एसचेव वत्तन्वया ॥ २ ॥ १८ ॥ सोचे। उक्को.
सकालट्ठिईएसु उववण्णो एसचेव विइयस्स लडी गवरं भवादेसेणं जहणेणं दो भव. नियमा, मन योगी नहीं परंतु वचन योगी और काया योगी, दोनों उपयोग, चार संझा, चार कषाय, जिव्हेन्द्रिय और स्पर्शेन्द्रिय ऐसी दो इन्द्रियों, तीन समुदात और शेष पृथ्वीकाया जैसे कहना. स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट बारह वर्ष ऐसे ही अनुषंध. भादेश से जघन्य दो भव. उत्कृष्ट संख्याव भव, कालादेश से जघन्य दो अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट संख्यात काल ॥ १७ ॥ वही जघन्य स्थिति में उत्पम हुवा वैसे ही करना ॥१८॥ वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हवा कितनी स्थिति से उत्पन्न होने ? अहो गौतम! बेइन्द्रिय की कन्धि जैसे कहनाः भवादेश से जघन्य दो भव उत्कृष्ट आठ भव. कालादेश से अपम्प
• प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी