Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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वाससहस्सठिईएसु, उक्कोसेणवि वावीसं वास सहस्स ठिईएमु सेसं तंचेव जात्र अणुबंधोत्ति णवरं जहण्णेणं एक्कोवा दोवा तिण्णिवा, उक्कोसेणं संखेजावा असंखेजावा। उववजेजा ॥ भवादेसेणं जहण्णेणं दो भवग्गहणाई उक्कोसेणं अट्ठ भवग्गहणाई ॥ कालादेसेणं जहण्णेणं वावीसं वाससहस्साई, अंतोमुहत्तमब्भहियाई, उक्कोसेणं छात्र
तरि वाससतसहस्सं एवइयं जाव करेजा.॥ ३ ॥ ५ ॥ सोचेव अप्पणा जहण्णकाल द्वितीओ जाओ सोचेव पढमिल्लगमओ भाणियव्वो णवरं लेस्साओ तिण्णि, द्विती
जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसेणवि अंतोमुहुत्तं अप्पसत्या अज्जवसाणा, अणुबंधो जहा भावार्थ बंधन पर्यंत वैसे ही कहना परंतु विशेषता यह है कि जघन्य एक, दो, तीन उत्कृष्ट संख्यात असंख्यात
उत्पन्न होवे. भवादेश से जघन्य दो भव उत्कृष्ट आठ x भव कालादेश से जघन्य बावीस हजार वर्ष
और अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट एक लाख छहत्तर हजार (१.७६०००) इतना यावत् करे ॥५॥ वही जघन्य 23 स्थितिवाला उत्पन्न हुवा वगैरह पहिला गमा कहना. परंतु लेश्या तीन स्थिति जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त
x जहां दोनों संवेध पक्ष में से एक भी संवेध पक्ष में उत्कृष्ट स्थिति होवे वहां उत्कृष्ट से आठ भव ग्रहण करना. V} अन्य पक्ष में असंख्यात भव ग्रहण करना. इस से यहां उत्पत्ति विषयभूत जीव को उत्कृष्ट के आठ भव कहे हैं.
42 पंचमांग विवाह पस्णन्ति (भगवती) सूत्र
4.860- चौवासवा शतक का बारहवा उद्दशा
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