Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
कालादेसेणं जहण्णेणं चोयालीसं वास सहस्साई उक्कोसणं छावत्तरि वाससतसहस्स एवइयं ॥ ९ ॥ ११ ॥ जइ आउकाइए एगिदिय तिरिक्ख जोणिएहिंतो उववज्जति किं सुहुम आउबादर आउ एवं चउक्कओभेदो भाणियब्बो, जहा पुढवी काइया |२६.२ ॥ १२ ॥ आउ काइयाणं भंते ! जे भविए पुढवीकाइएसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवश्यकाल दिईएस उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णेणं अंतोमुहुत्त द्वितीएसु उक्कोसेणं बावसिं वास सहस्स द्वितीएसु उववज्जेज्जा एवं पुढवीकाइयगमग सरिसा
णवगमगा भाणियव्वा णवरंथिवुगविंदु संट्टिते। द्विती जहण्णेणं अंतोमुहुत्तं उक्कोसणं सत्त उत्कृष्ट एक लाख छिहोत्तर हमार वर्ष आठ भव के ॥ ११ ॥ जब अप्काया एकेन्द्रिय तिर्यंच में से उत्पन्न होवे तो क्या मूक्ष्म अप्काया में से अथवा बादर अपकाया में से ऐसे ही पृथ्वीकाया जैसे चारभेद कहना ॥ १२ ॥ अहो भगवन् ! जो अप्काया पृथ्वीकाया में उत्पन्न होने योग्य होवे वह वहाँ । कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य अंतर्मुहूर्न उत्कृष्ट बावीस हजार वर्ष. ऐसे ही पृथ्वीकाया जैसे नव गमा कहना परंतु अम्काया का संस्थान स्तिवुक विन्दु का, स्थिति जघन्य अंतर्मुहूर्त उत्कृष्ट सात हजार वर्ष की. ऐसे ही अनुबंध स्थिति कहना. और संबंध तीसरा, छठा, सातवा, आठवा और
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. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.