Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
जहा तस्सचेव अग्रकुमारेसु उववजमाणस्स तहेव गिरवसेसं॥ ६ ॥ सोचेव अप्पणा उक्कोसकालट्ठिईओ जाओ तस्सवि तिसु गमएमु जहा तस्सचेव उक्कोसकाल ठिईयरस असुरकुमारसु उववजमाणस्स णवरं णागकुमारीटुतिं संवह च जाणेज्जा, सेसं तंचेव ॥९॥३॥ जइसंखेज वासाउय सण्णिमणु० किं पजत्तसंखेज, अपज्जत्त? गोयमा! पजत्त संखेज णो अपज्जत्त संखेजवासा ॥ पजत्त संखेज वासाउय सण्णि मणुस्साणं भंते ! जे भविए णागकुमारेसु उववाजित्तए, सेणं भंते ! केवइ ? गोयमा ! जहण्णेणं दस वाससहस्स द्विईएसु, उक्कोसणं देसूणं दो पलिओवमस्स ट्ठिईएसु उववज्जति, एवं दो गाउ उत्कृष्ट तीन गाउ. वही जघन्य स्थितिवाले उत्पन्न हुवे के तीनों गमा जप्त का अमुरकुमार में उत्पन्न होने जैसे कहना. वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा उस का भी असुरकमार में इस की ही उत्पत्ति का कहा वैसे ही यहां कहना. विशेष में यहां पर नागकुमार की स्थिति और
संवेध कहना ॥ ३ ॥ यदि संख्यात वर्ष के आयुन्यवाले संज्ञी मनुष्य उत्पन्न होवे तो क्या पर्याप्त या अप- 4 पर्याप्त उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! पर्याप्त उत्पन्न होवे परंतु अपर्याप्त उत्पन्न होवे नहीं. अहो मगवन् !
पर्याप्त संख्यात वर्ष के यावत् मनुष्य नागकुमार में उत्पन्न होवे तो कितनी स्थिति से उत्पन्न हो ? अहो.
* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावा