Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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बजमाणस्स जाव असंखेजवासाउय साण्णमणुस्सेणं भंते ! जे भविए णामकुमारेसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवइय कालट्ठिईएमु उववज्जइ ? गोयमा ! जहण्णणं दसवास सहस्सट्ठिईएमु उक्कोसेणं देसूणं दुपलिओवमं एवं ज़हेव असंखेज वासाउयाणं तिरिक्खजोणियाणं णागकुमारेसु आदिल्ला तिण्णिगमगा तहेव इमस्सवि, णवरं पढम विईएसु गमएमु सरीरोगाहणा जहण्णेणं साइरेगाई पंचधणुहसयाई, उक्कोसेणं तिण्णि गाउयाई, तईय गमगाहणा जहण्णेणं देसूणाई दो गाउयाई, उक्कोसेणं तिण्णिगाउयाई
सेसं तंचेव ॥ सोचेव अप्पणा जहण्णकाली?ईओ जाओ तस्स तिमुवि गमएसु। भावार्थ गौतम ! संज्ञी मनुष्य में से उत्पन्न होते हैं. परंतु असंज्ञी मनुष्य में से नहीं उत्पन्न होते हैं ? वगैरह जैसे
असुरकुमार समान यावत् असंख्यात वर्ष के आयुष्यवाले संज्ञो मनुष्य जो नागकुमार में उत्पन्न होने योग्य होते हैं वे कितनी स्थिति से उत्पन्न होते हैं ?. अहो गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट देश उणा
दो पल्योपम. ऐसे ही जैसे असंख्यात वर्ष के आयुष्यवाले तिर्यंच के नागकुमार में उत्पन्न होने के पहिले Late तीन गमे कहे वैसे ही तीनों गमा यहां कहना. विशेष में पहिला दूसरा गमा में शरीर की अवगाहना
अघन्य साधिक पांच धनुष्य उत्कृष्ट तीन माउ. तृतीय गमा में शरीर अवगाहना जघन्य देश उना"
पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र 48g
__488+ चौबीसवा शतक का तीसरा उद्देशा
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