Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुवाद क-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
सण्णिमणू णो असण्णिमणू ॥ जइ साण्णमणुरसहिंतो उववजंति किं संखेजवासाउय सणिमणू असंखेजवासाउयसण्णिमणुस्स जाव उववज्जति ? गोयमा ! संखजवासाउय जाव उववज्जति; असंखेजवासाउय जाव उववज्जति ॥ ३१ ॥ असंखजवासाउय २५८६ सण्णि मणुस्सेणं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववाजित्तए सेणं भंते ! केवइय कालट्ठिईएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णेणं दसवास सहस्सढिईएसु उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमट्टिईएसु उववज्जेज्जा, एवं असंखेजवासाउय तिरिक्खजोणिय सरिसा मनुष्य में से उत्पन्न होवे नहीं. यदि संज्ञी में मे उत्पन्न होवे तो संख्यात वर्ष के आयुष्यवाले उत्पन्न होवे । या असंख्यात वर्ष के आयुष्यवाले यावत् उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! संख्यात वर्ष के यावत् उत्पन्न होवे और असंख्यात वर्ष के यावत् उत्पन्न होवे ॥ ३१ ॥ असंस्थान धरी के गाराष्पवाले मनुष्य असर, भार में उरूण हाने योग्य होते है कि
मी गौतम ! जघन्य दश E हजार वर्ष उत्कृष्ट तीन पल्योपप. ऐसे ही असंख्यात वर्ष के आयुष्यवाले तिर्यंच पंचेन्द्रिय जैसे पहिले तीन
गमा कहना. परंतु पहिला और दूसरा गमा में अवगाहना में भिन्नता है. पहिला व दूसरा गमा में अवगाहना जघन्य साधिक पांचसो धनुष्य उत्कृष्ट तीनगाउ और तीसरा गमा में जघन्य उत्कृष्ट तीन गाउ की अवगा-3
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*
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