Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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खजोगिएणं भंते ! जे भविए असुरकुमारेसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवइय कालदिईएसु उववजेजा ? गोयमा ! जहण्णेणं दसवाससहस्सट्टिईएसु उक्कोसेणं साइरेग सागरोवमा?ईएसु उववजेज्जा तेणं भंते ! जीवा एग समएणं एवं एएर्सि रयणप्पभपुढविगमग सरिसा णवगमगा णेतव्वा णवरं अप्पणा जहण्ण कालठिईओ भवइ ताहे तिसुवि गमएसु इमं णाणत्तं चत्तारि लेस्साओ, अझवसाणा पसत्था सेसं तंचेव संबेहो साइरेगेण सागरोवमेण कायन्यो ॥ ३० ॥ जइ मणुस्सेहिंतो उववजति
किं सण्णिमणुस्सेहितो उववज्जति, असण्णिमणुस्सेहितो उक्वजति ? गोयमा ! भावार्थ के आयुष्ययाले संजी पंचेन्द्रिय तिर्यंच असुरकुमारमें उत्पन्न होने योग्य होये वे जघन्य दशहजार वर्ष उत्कृष्ट Hinमाधिक सागरोपम की स्थिति से उत्पन्न होते. अहो भगवन् ! वे जीवों एकसमय में कितने उत्पन्न होते हैं :
बगेरह रत्नप्रभा पृथ्वी के नव गमा सरिखे यहां भी नव गमा कहना परंतु जघन्य स्थितिवाले तिर्यंच के तीनों गमाओं में चार लेश्या व प्रशस्त अध्यक्साय कहना शेष सब वैसे ही कहना यावत् साधिक सागरोपम का संवेध है।॥ ३० ॥ अहो भगवन् ! यदि मनुष्य में से उत्पन्न होवे तो क्या संज्ञी मनुष्य में से उत्पन्न हो या असंज्ञी मनुष्य में से उत्तम होवे ? अहो गोता! संही मनुध में से उत्पन्न होने परंतु अमंझी 11
पंचमा विवाह पपणत्ति (भगवती) मूत्र
- चौवीसवा शतक का दसरा
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