Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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42 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी -
णवरं ट्ठिई जहण्णेणं तिण्णि पलिओवमाई उक्कोसेणवि तिण्णि पलिओवमाइं एवं अणुबंधोवि ॥ कालादेसेणं जहणेणं तिण्णि पलिओवमाइं दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहियाई उक्कोसेणं छपलिओवमाइं एवइयं जाव सेवेजा ॥ ७ ॥ २७ ॥ सोचेव जहण्णकाल४िईएसु उववण्णो एसचेव वत्तव्यया णवरं असुरट्टिई संवेहंच जाणेजा ॥ ८ ॥ २८ ॥ सोचेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिपलिओवर्म उक्कोसेणवि तिपलिओवमं एसचेव वत्तन्वया णवरं कालादेसेणं जहण्णणं छपलिओवमाई उक्कोसेणवि छपलिओवमाइं ॥ ९ ॥ २९ ॥ जइ संखेजवासाउय सण्णि पंचिंदिय
जाव उववजंति किं जलचर एवं जाव पजत्तसंखेजवासाउयसण्णिपंचिंदियतिरि• है उत्कृष्ट भी तीन पल्योपम ऐसे ही अनुबंध. कालादेश से जघन्य तीन पल्योपम दश हजार वर्ष+
आधिक उत्कृष्ट छ पल्योपम. इतना यावत् सेवे ॥ २७ ॥ वही जघन्य स्थिति में उत्पन्न हुवा वही वक्तव्यता कहना परंत असरकुमार की स्थिति व संवेध कहना ॥ २८ ॥ वही उत्कृष्ट स्थिति में उत्पन्न हुवा जघन्य उत्कृष्ट तीन पल्योपम और कालादेश से जघन्य उत्कृष्ट छ पल्योपस. शेषमय वही वक्तव्यता कहना ॥२९॥ यदि संख्यात वर्ष के संही पंचेन्द्रिय यावत् उत्पन्न होवे तो क्या जलचर ऐसे ही यावत् पर्याप्त संख्यात वर्ष
भावार्थ
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *