Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचमांग.विवाह पण्णत्ति (भगवती ) सूत्र 48th
मरति ॥ १६ ॥ वेदणा दुविहावि सातावेदगावि असातावेदगावि ॥ १७ ॥ वेदो दुविहोवि इत्थी वेदगावि पुरिसवेदगावि, णो णपुंसगवेदगा ॥१८॥ ठिईय. जहण्णेणं साइरेगा पुवकोडी उक्कोसेणं तिण्णि पलिओवमाइं ॥ १९ ॥ अज्झक्साणा पसत्थावि अप्पसत्थावि ॥ २० ॥ अणुबंधो जहवठिई, कायसंवेहो भवादेसेणं दो . भवग्गहणाई ॥ कालादेसेणं जहणणं साइरेगा पुवकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं :
अभहिया उक्कोसेणं छ पलिओवमाइं, एवइयं जाव करेजा ॥ १ ॥ २१ ॥ सोचेव । , जहण्ण कालट्ठिईएमु उववण्णो एसचेव वत्तव्यया णवरं असुरकुमारढ़िई संबह च ।
जाणेजा ॥ २२ ॥ सोचेव उक्कोसकालदिईएसु उववण्णो जहण्णेणं तिण्णि पलिओवेदनेवाला ॥ १७ ॥ इस में वेद दो स्त्री वेद और पुरुष वेद. नपुंसक वेद नहीं है ॥ १८ ॥ स्थिति जघन्य पूर्व क्रोड से कुच्छ अधिक उत्कृष्ट तीन पल्योपम ॥१९॥ अध्यवसाय प्रशस्त और अप्रशस्त ॥२०॥7 अनुबंध स्थिति जैसे कहना. कायासंवैध भवादेश से दो भव और कालादेश से जघन्य कुच्छ आधिक पूर्व क्रोर और दश हजार वर्ष अधिक उत्कृष्ट छ पल्योपम. इतना यावत् करे. यह पहिला गमा हुवा ॥२१॥ वही जघन्य स्थितिवाला असुरकुमार में उत्पन्न हुवा यही वक्तव्यता कहना. विशेष में स्थिति ।
38. चौबीसवा शतक का दूसरा
भावार्थ