Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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हियाई, एवइयं जाव करजा ॥ एवं रयणप्पभापुंढवीगमगसरिसा णवविगमा भाणियव्वा णवरं सव्वगमएसुवि गैरइय ठिईय संवेहेसु सागरोवमा भाणियव्वा ॥ एवं जाव छ? पुढवित्ति णवरं गेरइएठिईजा जत्थ पुढवीए जहण्णुकोसिया सा तेणचेव कमेण चउग्गुणा कायव्वा बालुयप्पभाए अट्ठावीसं सागरोवमा चउगुणिया भवंति, पंकप्पभाए चत्तालीसं, धूमप्पभाए अट्ठसटुिं, तमाए अट्ठासीति ॥ संघयणाई वालुयप्पभाए पंचविह
संघयणी तंजहा-बइरोसभनाराय जाव कीलिया संघयणी, पंकप्पभाए चउव्विह संघयणी भावार्थ
जघन्य एक सागरोपम और अंतर्मुहूर्त अधिक उत्कृष्ट बारह सागरोपम चार भव शर्कर प्रभा के और चार पूर्व क्रोड अधिक (तिर्यंच के चार भव ) इतने काल यावत् गतागत करे. यों रत्नप्रभा के नव गमे जैसे शर्कर प्रभा के नव गमे कहना. विशेष नारकी की स्थिति और संबंध में भिन्नता अर्थात् जहां जो स्थिति होवे मो कहना. ऐसे ही छठी नारकी पर्यंत कहना. विशेष में जहां जो नरक स्थिति कही है उस से
चौगुनी स्थिति संवेध द्वार में कहना. जैसे तीसरी बालु प्रभा में उत्कृष्ट सात सागरोपम की स्थिति है। 19 उसे चौगुनी करने से २८ मागगेपम की स्थिति होती है. पंकप्रभा में चालीस सागरोपम, धूम्रप्रभा में *१६८ सागरांपम, तमममा में ८८ सागरोपम. संघयन में बालुप्रभा में वज्रऋषभनाराच यावत् कीलक
+ अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
*प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रमाइजी *