Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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48 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
वाससहस्सेहिं अब्भहियाओ एवइयं जाव करेजा ॥ १२॥ सोचेव उकासकालढिईएस उववण्णो साचेव सत्तम गमग वतन्वया णवरं कालादेसेणं जहणेणं एंगे सागरोवमं पुन्चकोडीए अब्भहियं उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं वउहिं पुन्यकोडीहिं अब्भहियाई एवइयं कालं जाव करेजा ॥ ५३ ॥ पज्जत्तसंखेज्जवासाउय सणि मणुस्सेणं भंते ! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए णेरइए जाव उववजित्तए मेणं भंते! केवइय काल जाव उववजेज्जा ? गोयमा ! जहणेणं सागरोवमट्टिईएसु उकोसणं तिणि सागरोवमट्टिईएसु उववज्जेजा, तेणं भंते ! एवं सोचेव रयणप्पमा पुढवी
गमओ यन्वो गवरं सरीरोगाहणा जहण्णेणं रयाणि पुहुत्त उक्कोसेणं पंच धणुहसपाई यावत् करे ॥५२॥ वही उत्कृष्ट स्थिति से उत्पन्न हुवा सातवा ममा कहना. विशेष में कालादेश से जघन्य एक सागरोपम पूर्व क्रोड अधिक उत्कृष्ट चार सागरोपम पूर्व कोड अधिक. इतना काल यावर करे ॥ ५३॥ अहो भगवन् ! जो पर्याप्त संख्यात वर्ष के आयुष्यवाले संत्री मनुष्य शर्कर ममा में उत्पन्न होने योग्य होबे वे कितने काल की स्थिति से यावत् उत्पन्न होने ? अहो गौतम ! अघन्य एक सागरोपम उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति से उत्पन्न होवे. और सब रत्नममा पृथ्वी जैसे मानना. शरीरा
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प्रकाशक-राजहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालामसादजी.
भाग