Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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२०७४
मुनि श्री अमोलक ऋषिजी +
भावार्थ
द्विती जहण्णेणं वासपुहुत्तं उक्कोसेणवि वासपुहुत्तं एवं अणुबंधोवि सेसं जहा ओहियाणं ॥ संबेहो उवउंजिउण भाणियब्वो भाणियन्वो ॥ ६ ॥ सोचेव अप्पणा उक्कोस कालट्ठितीओ जाओ तस्सवि तिसु गमएसु इमं णाणत्तं-सरीरोगाहणा जहण्णेणं पंच धणुहसयाई उक्कोसेणवि पंचधणुहसयाई, ठिती जहण्णेणं पुन्बकोडी उक्कोसेणवि पुव्वकोडी एवं अणुबंधोवि, सेसं जहा पढमगमए गवरं णेरइयट्ठिती कायसंवेहं च ।
जाणेजा ॥ ९ ॥ एवं जाव छ? पुढवी णवर तच्चाए आढवेत्ता एकेक संघयणं ऐसा ही कथन है परंतु कालादेश से जघन्य तीन सागरोपम प्रत्येक वर्ष अधिक उत्कृष्ट चार सागरोपम
चार पूर्व क्रोड अधिक. जघन्य स्थितिवाला मनुष्य को तीनों गमा में लब्धि परिणामादि वैसे ही कहना छपरंतु शरीर अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट प्रत्येक हाथ की, स्थिति जघन्य उत्कृष्ट प्रत्येक वर्ष की जानना.
अनुबंध भी वैसे ही कहना. शेष सब औधिक जैसे कहना. संबंध में कालादेश से जघन्य स्थिति में औधिक में जघन्य एक सागरोपम और प्रत्येक वर्ष अधिक उत्कृष्ट बारह सागरोपम चार प्रत्येक वर्ष अधिक. वह ही जघन्य स्थितिवाली नारकी में जघन्य एक सागरोपम प्रत्येक वर्ष अधिक उत्कृष्ट चार
सागरोपम चार प्रत्येक वर्ष अधिक यों छ गमा कहना. अब उत्कृष्ट स्थितिवाले. मनुष्य इन में भी शरीर * अवगाहना जघन्य उत्कृष्ट पांच सो धनुष्य स्थिति जघन्य उत्कृष्ट पूर्व क्रोड, ऐसे ही अनुबंध. शेष पहिला
*.प्रकाशक-राजाबहादुर लालामुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.