Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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- पंचमाङ्ग विवाह पण्णात्ति (भगवती ) सूत्र
धूमप्पभाए तिविहसंघयणी, तमाए दुविहसंघयणी-तंजहा वइरोसभनाराय संघयणी उसभ नाराय संघयणी सेसं तंत्र ॥ ४२ ॥ पजत्तसंखेजवासाउय जाव तिरिक्ख जोणिएणं भंते ! जे भविए अहे सत्तमपुढवीणेरइएसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवइयकालदिईएसु उववज्जेज्जा ? गोयमा ! जहण्णेणं वावीसं सागरोवमट्टिईएसु उक्कोसेणं तेत्तीस सागरोवमठिईएसु उववज्जेज्जा तेणं भंते ! जीवा एवं जहेब रयणप्पभाए णवगमगा लडी सव्वेविणवरं वइरोसभनारायणसंघयण।इत्थीवेदगाण उववजंति
सेसं तंचेर जाव अणुबंधोति संवेहो भवादेसेणं जहणणं तिण्णि भवग्गहणाई उक्कोसेणं ऐसे पांच संघयनी, पंकप्रभा में चार संघयनवाला जादे, धूम्रपभा में तीन संघयनवाला जावे, तप प्रभा में दो संघयनवाला जावे, जिन के नाम ? वा ऋषभ नाराच संघयन और २ ऋषभ नाराच संघयन. शेष सब वैसे ही जानना ॥ ४२॥ अहो भगवन । पर्याप्त संख्यात वर्ष के आयष्यवाले यावत् तिर्यंच सातवी नरक में उत्पन्न होने योग्य होता है वह कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ! अहो गौतम ! जघन्य बावीस सागरो पम उत्कृष्ट तेत्तीस सागरोपम की स्थिति से उत्पन्न होते. अहो भगवन् ! वे एक समय में कितने उत्पन्न होते हैं : वगैरह रत्नप्रभा के जैसे नव गम कहे वैसे ही यहां कहना. विशेष में वज्र ऋषभ नाराच
चौवीसवा शतक का पहिला उद्देशा