Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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करेजा ॥४०॥ एवं एते णवगमका उक्खेवओ णिक्खवओणवसवि जहेव असणीणं ॥४॥पजत्त संखेज वासाउय सण्णि पंचिंदिय तिरिक्ख जोणिएणं भंते ! जे भविए सक्करप्पभाए पुढवीए णेरइएसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवइय कालट्ठिईएसु उवव
२५५९ जेज्जा, जहण्णणं सागरोवमट्ठिईएसु उववज्जेज्जा, उक्कोसेणं तिण्णि सागरोवमठिईएसु उवबज्जेज्जा ॥ तेणं भंते ! जीवा एगसमएणं एवं जहेव रयणप्पभाए . उववजंतगस्स लखीसव्वेवि णिरवसेसा भाणियव्वा जाव भवादेसोत्ति ॥ कालादेसेणं जहण्णेणं साग.
रोबमं अंतोमुहुत्त मन्भहियं उक्कोसेणं वारस सागरोवमाई चाहिं पुवकोडीहिं अब्भLE करे ॥ ४० ॥ गमे की शुरूआत को उत्क्षेप कहते हैं, गमे की पूर्णता को निक्षेप कहते हैं. जैसे असंझी में 1. उत्क्षेप निक्षेप कहा वैसे ही यहांपर भी कहना ॥ ४१ ॥ अहो भगवन् ! पर्याप्त संख्यात वर्ष के आयुष्य-1, IE वाले संझी पंचेन्द्रिय तिर्यंच शर्करप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य होवे वह वहां कितनी स्थिति से उत्पन
होवे ? अहो गौतम ! जघन्य सागरोपम की स्थिति से उत्पन्न होवे उत्कृष्ट तीन सागरोपम की स्थिति से 15 उत्पन्न होवे. अहो भगवन् ! एक समय में कितने उत्पन्न होवे ? वगैरह सब प्रश्नों का उत्तर नैसे
रत्नप्रभा पृथ्वी का. कहा कहा वैसे ही ..निरवशेष. यहां. भकादेश पर्यंत कहना. काल भाश्री |
वाहपण्णत्ति (भगवती) मंत्र
चौबीसवा शतक का पहिला
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