Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
उवत्र जेज्जा ? गोयमा ! जहणणं दसवास सहस्सट्टिईएस उक्कोसेणं सागरोवमट्टिईएस उववज्जेज्जा, तेणं भंते ! जीवा अवसेसो परिणामादिवो भवादे से पज्जवसाणे एएसिं चैत्र पढमोगमओ णेतव्त्रो णवरं ठिई जहणेणं पुन्त्रकोडी उक्कोसेणवि पुव्त्रकोडी एवं अणुबंधोवि से तंत्र ॥ कालादेसेणं जहणेणं पुन्त्रकोडी दसहिं वाससहस्से हिं अमहिया उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहिं पुव्वकोडीहिं अमहियाइं एवइयं कालं जाव करेज्जा ॥ ३९ ॥ सोचेत्र जहण्ण कालट्ठिईएस उववण्णो जहण्येणं दस बास सहरसाठईएस उक्कोसेणवि दसवाससहस्मठिईएल उववज्जेज्जा तेणं भंते ! जीवा अहों भगवन् ! वे जीवों यावत् परिणाम से लगाकर भव आश्री तक इस का ही ( संज्ञी ) का प्रथम गमा जानना. स्थिति में भिन्नता है, वहां जघन्य स्थिति अंतर्मुहूर्त की थी यहांपर जघन्य और उत्कृष्ट {दोनों पूर्व क्रोड जानना. ऐसे ही अनुबंध कहना. शेष वैसे ही कहना. कालादेश से जघन्य पूर्व {क्रोड और दश हजार वर्ष अधिक और उत्कृष्ट चार सागरोपम और चार पूर्व क्रोड अधिक जानना. ( इतना काल तक सेवन करे. इतना काल यावत् गतागत करे. ३९ ॥ अहो भगवन् ! वही संज्ञी तिच पंचेन्द्रिय जघन्य स्थितित्राली नारकी में उत्पन्न हुआ जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट भी दश हजार वर्ष
॥
48 पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र **
48 चा शतकका पहिला उद्देशा 48
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