Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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चत्तालीस वाससहस्साई चउहिं अंतोमुहुत्तेहिं अब्भहियाई एवइयं जाव करेज्जा ॥ ३७ ॥ सोचेव उक्कोसकालट्ठिईएसु उववण्णो ॥ जहण्णेणं सागरोवमट्टिईएमु उक्को सेणवि सागरोवमट्टिईएमु उववजेजा ॥ तेणं भंते ! एवं सोचेव चउत्थोगमओ
२५५६ णिरवसेसो भाणियब्यो जाव कालादेसेणं जहणणं सागरोवमं अंतोमहत्त मन्भहियं उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाइं चउहिं अंतीमुह तेहिं अब्भहियाइं एवइयं जाव करेजा ॥ ३८ ॥ उक्कोसकाल ट्ठिईय पज्जत्तसंखेज्जवासाउय जाव तिरिक्खजोणिएणं भंते !
जे भविए रयणप्पभा पुढवी जेरइएसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवइय कालट्ठिईएसु भावार्थदश हजार वर्ष अनर्मुहूर्त अधिक और उत्कृष्ट चालीस हजार वर्ष और चार अंतर्मुहूर्त अधिक इतना यावत् ।
को वही उत्कृष्ट स्थिति वाला नरक में उत्पन्न उत्कृष्ट एक सामरोपम की स्थिति में उत्पन्न होवे ऐसे ही चौथा गमा विशेषता रहित कहना यावत् काला देश से जघन्य एक सागरोपम व अंतमुहून अधिक उत्कृष्ट चार मागरोपम व चार अंतर्मुहूर्त अधिकइतना करे॥३८॥अहो भगवन् ! उत्कृष्ट स्थितिवाले पर्याप्त संख्यात वर्वके आयुष्य वाले संज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय रत्नप्रभा पृथ्वी में उत्पन्न होने योग्य होवे वह वहां कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो । गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट सागरोपम की स्थिति से उत्पन्न होवे. अहो. भगवन् ! वे जीवों ।।
-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
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* प्रकाशक-राजीवहादुर लाला मुखदव सहायजी ज्वालाप्रसादजी,