Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सोचव सत्तमोगमों गिरवसेसो भाणियन्त्रो जाव भवादेसोत कालादेसणं नहणणं । पुन्चकोडी दसवाससहस्सेहिं अब्भहिया उक्कोसेणं चत्तरि पुन्चकोडीओ चत्तालीसाए वाससहस्सेहिं अन्भहियाओ एवइयं जाव करेज्जा उक्कोसकालंट्टिईय पजत्त जाव तिरिक्ख जोणिएणं भंते ! जे भविए उक्कोसकालदिईए जाव उववजित्तए सेणं भंते !. केवइय कालदिईएसु उववजेजा ? गोयमा! जहण्णेणं सागरोवमट्टिईएसु .
उक्कोसेणवि सागरोवमट्टिईएसु उववजेजा तेणं भंते! सोचेव सत्तमो गमओ णिरवसेसो ___भाणियवो जाव भवादेसोत्ति, कालादेसेणं जहण्णेणं सागरोवमं पुव्यकोडीए अब्भ
हियं उक्कोसेणं चत्तारि सागरोवमाई चउहि पुन्चकोडीहिं अब्भहियाइं एवइयं जाव । भावार्थ E उत्पन्न होवे. यहां भवादेश तक सातवा गमा विशेषता रहित कहना कालादेश से जघन्य पूर्व
क्रोड और दश हजार वर्ष अधिक उत्कृष्ट चार. पूर्व क्रोड और चालीस हजार वर्ष अधिक.. इतना यावत् :करे ॥ ४० ॥ अहो भगवन् ! उत्कृष्ट स्थितिवाला पर्याप्त यावत् तिर्यंच पंचेन्द्रिय उत्कृष्ट स्थिनिवाली
नारकी में उत्पन्न होवे वह वहां कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य उत्कृष्ट एक | सागरोपम की स्थिति से उत्पन्न होवे. यहां पर भी भवादेश तक सातवा गमा कहना. कालादेश से 1 जघन्य एक सागरोपम और पूर्व क्रोड अधिक उत्कृष्ट चार सागरोपम और चार पर्व कोर इतना यावत ।।
48 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
. प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी*