Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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२४७१.
॥ ॥ पुढवीकाइएणं भंते ! इमीसे रयणप्पभाए पुढवीए सक्करप्पभाए पुढवीए अंतरा समोहए, जे भविए ईसाणेकप्पे पुढवीकाइयत्ताए उववज्जित्तए ॥ एवं चेव जाव ईसिप्पभाराए उववाएयव्वो ॥ २ ॥ पुढवीकाइएण भंते ! सक्करप्पभाए वालु यप्पभाए पुढवीए अंतरा समोहए, समोहइत्ता जेभविए सोहम्मे जाब ईसिप्पभाराए ॥ एवं एएणं कमेणं जाव तमाए । अहे सत्तमाएं पुढवीए अंतरा समोहए समोहइत्ता जे.
भरिए सोहम्मे कप्पे जाव ईसिप्पडभाराए उववाएयव्वो ॥ ३ ॥ पुढवीकाइएणं भंते ! ॥ १ ॥ अहो भगवन् ! इस रत्नप्रभा व शर्कर प्रभा.की शंच में पृथ्वीकाया मारणांतिक समुद्धात से *काल करके ईशान देवलोक में पृथ्वी कायापने उत्पन्न होवे वगरह पूर्वोक्त जैसे यावत् ईपत्मारभार पृथ्वी-14
काया में उत्पन्न होव ॥ २ ॥ अहो भगवन् ! शर्कर प्रभा व बालु प्रभा की बीच में पृथ्वी काया मारणातिक समुद्धात करके सौधर्म देवलोक में पृथ्वीकायापने उत्पन्न होने योग्य होवे वगैरह इस क्रम में छठी तमा व सातवी तमतमा पृथ्वी की बीच में पृथ्वीकाया मारणांतिक समुद्धात करके सौधर्म देवलोक में पृथ्वीकायापने उत्पन्न होवे वगैरह. सब पूर्वोक्त जैसे कहना. यावत् ईषत्मा-3, भार पृथ्वी में उत्पन्न होवे ॥ ३ ॥ सौधर्म ईशान व सनत्कुमार माहेन्द्र की बीच में ।
Nag पंचगंग विवाह पष्णन्ति ( भगवती ) सूत्र
भावार्थ
वीसंवा शतक का छठा उद्देशा