Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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रइयाणवि एवं जाव वेमाणिए ॥ एवं जाव अंतराइयउदयस्स ॥ ४ ॥ इत्थीवेदस्सणं भंते ! कइविहे बंधे पण्णत्ते ? ॥ एवं चेव ॥ असुरकुमाराणं भंते ! इत्थीवेदस्स कइविहे बंधे प० ॥ एवं चेव ॥ एवं जाव वेमाणिए, णवरंजस्स इत्थिवेदो अत्थि ॥ एवं पुरिसवेदस्सवि ॥ एवं चेव पुंसग वेदस्सीव ॥ जाव वेमाणिए; णवरं जस्सजो अत्थि वेदो ॥ ५ ॥ दसणमोहणिजसणं भंते ! कम्मरस कइविहे बंधे, एवं णिरंतर जाव वेमाणिए ॥ एवं चरित्तमोहणिज्जस्सवि ॥ जाव वेमाणिए ॥ एवं एएणं कमेणं
48 अनुवादक-बालग्रामचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी +
प्रकाशक राजावहदुर लाला मुखवसहायजी मालाप्रसादनी
भावार्थ
तीनों बंध चौवीस दंडक आश्री जानना. ज्ञानावरणीय जैसे अंतराय तक कहना ॥४॥ अहो भगवन् ! स्त्री वेद के कितने बंध कहे हैं ? अहो गौतम ! स्त्री वेद के उक्त तीनों बंध कहे हैं. अहो भगवन् ! अमरकुमार के स्त्री वेद के कितने बंध कहे हैं ? अहो गौतम ! उक्त तीनों बंध कहे हैं. ऐसे ही दश भवनपात, तिर्यंच, मनुष्य, वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक तक कहना. पुरुष वेद का भी वैसे ही कहना. नपुंसक वेद भवनपति, वाणव्यंतर, ज्योतिषी व वैमानिक छोडकर अन्य स्थान पाते हैं ॥५॥ अहो भगवन् ! दर्शन मोहनीय कर्म के कितने बंध कहे हैं ? अहो गौतम ! ऐसे ही वैमानिक पर्यंत जानना. ऐसे ही चारित्र मोहनीय कर्म का भी वैमानिक पर्यंत कहना, इसी तर उदारिक भरीर यावत् कार्माण
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