Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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4.2 अनुवादक-बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
खेजइ भागं उक्कोसेणं अंगुल पहत्तं, सेसं तवेव। सेवं भंते भंतेत्ति ॥ पढम वग्गस्स अट्ठमो उद्देमो ॥१॥ ८ ॥ जहा पुप्फे एवं फलेवि उद्देसओ अपरिसेसो भाणियन्वो ॥ पढम वग्गरस णवमो उद्देसो ॥ १ ॥९॥ एवं बीए उद्देसओ ॥ पढम बग्गस्स दसमो उद्देसो ॥१॥..॥ एए दस उद्देसमा ॥ पढमो वग्गो सम्मत्तो ॥ १॥ इकवीसयरस पढमो वग्गो सम्मत्तो ॥२१॥॥ . अह भंते ! कल - मसूर -तिल- मुग्ग-मास-निप्फावं-कुलत्थ-आलिसिं-दगस-तिण
पलिमंथगाणं ॥ एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति तेणं भंते ! जीवा कओप्रत्येक अंगुल की. शेष वैसे ही, यह प्रथम वर्ग का आठवा उद्देशा संपूर्ण हुबा ॥ १ ॥ ८॥ जैसे पुष्प का कहा वैसे ही फल का कहना. यह प्रथम वर्ग का नववा उद्देशा ॥ १ ॥९॥ ऐसे ही बीज का कहना. यह प्रथम वर्ग का दशवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥१॥ १० ॥ इस तरह दश उद्देशों का प्रथम वर्ग संपूर्ण हुवा. यह एकवीसवा शतक का पहिला उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २१॥१॥ है अहो भगवन् ! चिने, मसूर, तील, मुंग, उडिद, वाल, कुलत्य, आललि और कावली चिने उन में जो जीव मूलपने उत्पन्न होते हैं वे जीवों कहां से उत्पन्न होते हैं। ऐसे ही मूलादि दश उद्देशे शाली जैसे
• प्रकाशक-राजावादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी.
भावार्थ