Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
भावार्थ
48 अनुवादक - बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
॥ २४ ॥ जहण काल द्विईय पजत असणि पंचिदिय तिरिक्ख जोणिएणं भंते ! जे भविए रयणप्पा पुढवीणरइएस उववज्जित्तए सेणं अंत ! केवइय कालाट्टईएस उववज्जेज्जा ? गोयंमा ! जहणणं दसवाससहस्सट्टिईएस उक्कोसेणं पलिओ मस्स असंखंजइभागट्टिईएस उववज्जेज्जा ॥ २५ ॥ तेणं अंत ! जीवा एग समएणं केवति अवसे तंत्र वरं इमाई तिण्णि जाणताई आउअज्झवसाणाणुबंधोय; जहणणं ट्टिई अंतोमुहतं उक्कोसेणंवि अंतोमुहुत्तं, तैसिणं भंते ! जीवाणं केवइया अज्झ वसाणा पण्णत्ता ? गोयमा ! असंखेजा अज्झत्रसाणा पण्णत्ता ॥ तेणं भंते ! किं और इतनी गतागत करे. ॥ २४ ॥ अहो भगवन् ! जघन्य स्थितिवाले पर्याप्त असंज्ञी तिर्येच पंचेन्द्रिय रमभा नारकी में उत्पन्न होने योग्य होता है वह कितने काल की स्थिति से उत्पन्न होत्रे ? अहो गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट पल्योपम के असंख्यातो भागकी स्थिति से उत्पन्न होवे ॥ २५॥ वे जीवों एक समय में कितने उत्पन्न होवे वगैरह विशेषता रहित कहना. इस में आयुष्य, अध्यवसाय व अनुबंध में विशेषता है. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त. अहो भगवन् ! उन जीवों को कितने अध्यवसाय कहे हैं ? अहो बौतम ! असंख्यात अध्यवसाय कहे हैं. अझे भगवन् ! वे क्या प्रशस्त हैं या अप्रशस्त हैं ? अहो
•
• प्रकाशक राजवडादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
२५४२