Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
4 पंचांग विवाह परणति ( मगवती ) सूत्र 48
सकालाठईयपज्जत तिरिक्ख जोणिएणं भंते! जे भविए जहण कालठिईएनु श्य
प्पभा जाव उववजित्तए सेणं भंते! केवति जाव उववजेजा ? गोयमा ! जहण्णेणं दसवास सहरसाठईएस, उक्कोसेणवि दसवाससहस्स ठिईएसु उववज्जेज्जा || तेणं भंते ! सेसं तंव जहा सत्तमगमए जाव सेणं भंते ! उक्कोसकालठिई जात्र तिरिक्खजोणिए जण काल रयणप्पमा जात्र करेजा ? गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई कालादेसेणं जहण्णेणं पुव्वकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अन्भहिया उक्कोसेणवि पुत्र कोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अब्भहिया एवइयं जाव करेजा ॥ २९ ॥ उक्को सकालठिईय पज्जत जाव तिरिक्खजोणिएणं भंते ! जे भविए उक्कोसकालठिईएस { यावत् करे || २८ || अहो भगवन् ! उत्कृष्ट स्थितिवाले पर्याप्त तिर्येच जघन्य स्थितिवाली नारकी में ( उत्पन्न होने योग्य होवे वह वहां कितनी स्थिति से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जघन्य उत्कृष्ट दश { हजार वर्ष शेष सब सातवा गमा जैसे कहना. यावत् उत्कृष्ट स्थिति यावत् तिर्यंच जघन्य स्थितिवाली रत्नप्रभा नरक में यावत् उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! भव आश्री दो भव और काल आश्री जघन्य { पूर्व क्रोड और दश हजार वर्ष अधिक उत्कृष्ट पूर्व क्रोड और दश हजार वर्ष अधिक. इतना यावत् करे | || २९ ॥ अहो भगवन् ! उत्कृष्ट स्थितिवाले असंज्ञी तिर्यंच पंचेन्द्रिय यावत् उत्कृष्ट स्थिति वाली नरक में
488+ चौबीसवा शतक का पहिला उद्देशा
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