Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
View full book text
________________
-
२५४
+१ अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री मम सक ऋषिमी
सेणं भंते ! केवइय कालदिई जाव उववजेजा ? गोयमा ! जहणणं दसवास सहस्सदिईएसु उक्कोसेणं पलिओवमस्स असंखेजइभागदिईएस उववजेजा ॥ तेणं भंते ! जीवा एगसमएणं अवसेसं जहेव ओहियगमएणं तहेव अणुगंतव्वं जाव इमाइं दोणि णाणताइं दिई जहण्णेणं पुनकोडी उक्कोसेणवि पुवकोडी; एवं अणुबंधोवि ॥ अवसेसं तंचेव ॥ सेणं भंते ! उक्कोसकालढिईय पजत्तअसीण्ण जाव तिरिक्खजोणिए रयणप्पभा जाव ? गोयमा ! भवादेसेणं दोभवग्गहणाई. कालादेसेणं जहण्णेणं पुन्चकोडी दसहिं वाससहस्सेहिं अमहिया, उक्कोसणं पलिओवमस्स.
असंखेजहभागं पुवकोडीए अब्भहियं, एवइयं जाव करेजा ॥ २८ ॥ उक्कोगौतम ! जघन्य दश्च हजार वर्ष उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवा भाग. शेष सब जैसे ओधिक गमा कहा वैसे ही यहां कहना. इस में स्थिति और अनुबंध में भिन्नता है. स्थिति जघन्य उत्कृष्ट पूर्व कोड ऐ ही अनुबंध का जानना. अहो भगवन् ! वे ही उत्कृष्ट स्थितिवाले पर्याप्त असंही यावत् तिर्यंच रत्नप्रभा में यावत् कितनी गतागत करे? अहो गौतम ! भवादेश से दो भव और काला देश से जघन्य पूर्व क्रोड और दशानार वर्ष अपिक उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवा भाग और पूर्व क्रोड अधिक. इतना
प्रकाशक राजावहदुर लाला मुखदवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
भावार्थ