Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पंचांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र -
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पसस्था अप्पसत्था ? गोयमा ! णो पसत्था अप्पसत्था, अणुबंधो अंतोमुहुत्तं सेसं तंत्र ॥ सणं भंते ! जहण्णकालट्टिईय पजत्ता असण्णि पचिंदिय रयणप्पभा जाव करेजा ? गोयमा ! भवादेसेणं दो भवग्गहणाई, कालादेसेणं जहण्णेणं दसवाससहस्साई अंतीमुहत्तमभहियाई,उकोसणं पलिओवमस्स असंखेजइ भागं अंतो. मुहुत्तमभहिय एवइयं कालं जाव करेजा ॥२६॥ जहण्ण कालठिईय पजत असण्णि पंचिंदियतिरिक्खोणिएणं भंते ! जे भविए जहण्ण कालठिईएसु रयणप्पभा,
पुढवीणेरइएसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवइयकालठिईएसु उववजेजा ? गौतम ! प्रशस्त नहीं हैं परंतु अप्रशस्त है. अनुसंध अंतर्मुहूर्त का शेष वैसे ही कहना. अहो भगवन् ! जघन्य स्थिति वाले पर्याप्त अमंशी पंचेन्द्रिय रत्नप्रभा गवत् कर ? अहो गौतम! मवादेशसे दो भर और काला देश से जघन्य दश हजार वर्ष अंतर्मुहूर्न अधिक उत्कृष्ट पल्योपम का असंख्यातवा माग और अंतर्मुहूर्न अधिक. अहो गौतम ! इतना काल करे ॥ २६ ॥ अहो भगवन् ! जघन्य स्थिति चले पर्याय असंही तियेच पंचेन्द्रिय जघन्य स्थिति वाली रत्नप्रभा नारकी में उत्पन्न होवे तो काल से विना का होवे ? अहो गौतम ! मपन्य दश हजार वर्ष उत्कृष्ट दश हमार वर्ष ष सरो
* चौबीमा शतक का पहिला उद्दशा Ret
भावार्थ