Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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भावार्थ
पंचांग विवाह पष्णत्ति ( भगवती ) मूत्र +
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मूलादीया दस उद्देसगा जाव बीयंति णिरवसेसं जहा वसवग्गो ॥ चउत्थो वग्गो ॥ २२ ॥ ४ ॥ अहते ! सेडिय कणव मालिय कोरेंटग बंधुजीबमणोज जहा पण्णवणाए पढमपदे गाहानुसारेण जाव णलणीय कुंद महाजातीणं एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति एवं एत्थवि मूलादिया दस उद्देसमा निरवसेसं जहा सालीणं || पंचमो वग्गो सम्मत्तो ॥ २२ ॥ ५ ॥
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अह भंते! पूसफली कालिंगी तुंबी तउसी एलावालुकीय एवं पदाणि छिंदिय पव्वाणि पण्णवणागाथाणुसारेणं जहा तालवग्गो जाव दधिफोलई काकाल उत्पन्न होवे इत्यादि दश उद्देशे वंश वर्ग के दश
गंज पाटती, बाती, अकोल, इन के मूल में जो जीव उद्देश जैसे करना. यह बावीसवा शतक का चौथा वर्ग समाप्त हुवा ||२२||४||
अहो भगवन् ! सेडिक, कणव, मालिया, कोरंट, बन्धुजीव, रक्तवर्ण, वनस्पति, और मणोजा इत्यादि पाणा के पहिले पद की गाथानुसार यावत् कुंद महाजाती इनमें मूलपने जो जीव उत्पन्न होवे इत्यादि दश उद्देशे विशेषता रहित शालि जैसे करना. यह पांचवा वर्ग समाप्त ॥ २२ ॥ ८ ॥
अहां भगवन् ! पुंगफली, कालिंगी, तूबी, त्रपुसी, एलची, चीमडी, यावत् दधिफोल्लइ काकली,
4- बावीस शतक का ४-५-६ उद्देशा
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