Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
48+ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र -
उवत्रजति ॥ जइ पंचिदियतिरिक्ख जोणिएहिंतो उववजति किं सनिपचिदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति, असपिंचिदियतिरिक्ख जोणिएर्हितो उववज्जंति ? गोयमा ! सष्णिपंचिंदियतिरिक्खजोगिएर्हितो उववज्जति असणिपंचिदिय तिरिक्खजोणिएहिंतो उववज्जंति ॥ जइ असष्णिपंचिदियतिरिक्खजोणिएहिंतो उववजंति, किं जलचरेहितो उववज्जंति थलचरेहिंतो उववज्जति खहचरेर्हितो उववज्वंति ? गोयमा ! जलचरेहिंतो उवबज्वंति, थलचरहिंतो उवत्रजंति, खहचरेहिंतो उववजंति, ॥ जइ जलचरे थलचरे खहचरहिता उववज्जंति किं पज्जत्तएहिंतो उवत्रजंति अपज्जत्तएर्हितो उववज्जंति ? गोयमा ! पज्जत्तएहिंतो उववज्जति णो अपजत्तएहितो उववज्र्जति ॥ या खेचर में से उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! जलचर, स्थलचर व खवर में से उत्पन्न होवे. यदि १ { जलचर, स्थलचर खेचर में से उत्पन्न होवे तो क्या पर्याप्त उत्पन्न होवे या अपर्याप्त उत्पन्न होने अहो [गौतम ! पर्याप्त उत्पन्न होवे परंतु अपर्याप्त होवे नहीं. अहो भगवन् ! जो पर्याप्त असंज्ञी तिच पंचे न्द्रिय नारकी में उत्पन्न होने योग्य होता है वह कितनी नारकी में उत्पन्न होवे ? अहो गौतम ! पहिली एक नारकी में उत्पन्न होवे. अहो भगवन ! जो पर्याप्त असंज्ञी पंचेन्द्रिय तिर्यच पहिली उत्नमभा में उत्पन्न
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-+- चोवीसवा शतक का पहिला उद्देशा -
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