Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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क ऋषिजी -
२०३४
* अनुवादक-बालबाह्मचारी मुनि श्री
पजत्तसणिपचिंदियतिरिक्खजोगिएणं भंते ! जे भविए रइएम उखवाजत्तए सेणं भंते ! कइसु पुढवीसु उववजेजा ? गोयमा ! एगाए रयणप्पभाए पुढवीए उववजेजा ॥ पजत्तअसण्णि पंचिंदियतिरिक्खजोणिएणं भंते ! जे भविए रयण प्पभाए पुढवीए णेरइएसु उववजित्तए सेणं भंते ! केवइय काल ठिईएसु उववजेजा गोयमा ! जहण्णेणं दस वास सहस्सठितीएसु, उक्कोसणं पलिओवमस्स असंखेजइ भागठिईएसु उववजेजा ॥ तेणं भंते ! जीवा एगसमएणं केवइया उववजंति ?गोयमा जहणेणं एकोबा दोवा तिण्णिवा उकोसेणं संखेज्जावा उववनंति ॥२ ॥ तेसिणं भंते ! जीवाणं सरीरगा किंसंघयणी ५० ? गोयमा ! छेवट्टिसंघयणी प.॥ ३ ॥ तेसिणं
भंते ! जीवाणं के महालिया संरीरोगाहणा'५० ? गोयमा ! जहणेणं अंगुलस्स होने योग्य होवे उन की वहां कितनी स्थिति कही ? अंडी गौतम ! जघन्य दश हजार वर्ष की उत्कृष्ट पश्योपम के मनख्यात भाग की स्थिति करी. अहो भगवन् ! वे एक समय में कितने उत्पन्न होवे ! अहो गौतम ! जयन्य एक दो तीन उत्कृष्ट संख्यात उत्पन्न होते. ॥ २॥ अहो भगवन् ! उन जीवों के शरीर कौनसे संचयन वाले हैं। अहो गौतम ! ऐजट संघयनवाले हैं. ॥३॥ अवगाहना द्वार अहो भगवन् !
प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवमहायजी ज्वालाममादजी .
শাখ