Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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ऋषिजी *
'गाणी, अण्णाणी णियमा दुअण्णाणी तंजहा-मतिअण्णाणी सुअअण्णाणी ॥ ८ ॥
तेणं भंते ! जीवा किं मणजोगी वयजोगी, कायजोगी, ? गोयमा ! णो मणजोगी वइजोगीवि कायजोगीवि ॥ ९ ॥ तेणं भंते ! जीवा किं सागारावउत्ता अणागारोवउत्ता? गोयमा ! सागारोवउत्तावि अगागारोवउत्सावि ॥ १० ॥ तेसिणं भंते ! जीवाणं कइ सण्णा पण्णत्ता ? गोयमा! चत्तारिसण्णा पण्णत्ता तंजहाआहारसण्णा भयसण्णा मेहुणसण्णा परिग्गहसण्णा ॥ ११ ॥ तेसिणं भंते ! जीर्ण कहकसाया पण्णत्ता ? गोयमा ! चत्तारि कसाया पण्णत्ता, तंजहा-कोहकसाए श्रुत अज्ञान ऐसे दो अज्ञानवाले हैं. ॥ ८ ॥ योग द्वार अहो भगवन् ! क्या वे जीवों मनयोगी वचन योगी या कायायोगी हैं ? अहो गौतम ! मनयोगी नहीं हैं परंतु वचन व काया योगी हैं. ॥९॥ उपयोगद्वार
अहो भगवन् ! क्या वे सामारोपयोग वाले हैं या अनाकारांपयोग वाले हैं ? अहो मौतम ! साकारोपFयोग वाले व अनाकारोग्योग वाले हैं. ॥ १० ॥ संज्ञा द्वार अहो भगान् ! उन को कितनी संज्ञाओं
कहीं ? अहो गौतम : अह र संज्ञा, भय ज्ञा, मैथुन संज्ञा व परिग्रह संज्ञा ऐनी चार झा कही ॥११॥ कषाय द्वार अहो भगवन् ! उनको कितनी कषाय कही ! अहो गौतम ! क्राध, मान, माया व लोभ
42 अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक
.प्रकाशक-राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावा