Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ |
++ पंचमांग विवाह पण्णसि ( भगवती ) सूत्र 40
खेज्जइ भागं सेसं जहा सालीणं, पढमात्रग्गो ॥ २२ ॥ १ ॥
एवं एए दस उद्देसा ॥ बावीसइमरस :०;
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अह भंते ! बिंब जंबुकोसंबसाल अंकोल पीलु सेलु सलइ मोयइ मालय वडल पलास करंज पुत्तंजीव गरिट्ठ बहेलग हरिय गभल्लाय उंवरि भरिय खीरणि धायर पियालु पूतियणं बारगसण्हंणपासिय सीसव अयसि पुण्णागणागरुक्ख सीवण्ण असोगाणं एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए वक्कर्मति ॥ एवं मूलादीया दस उसाकायन्वा निरवसेसं जहा तालबग्गो || वितिओवग्गो सम्मत्तो ॥ २२ ॥ २ ॥
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शेष सब अधिकार शाली धान्य जैसे कहना. यों बावीसवे शतक के प्रथम वर्ग में दश उद्देश संपूर्ण यह बावीसवा शतक का प्रथम उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २२ ॥ १ ॥
अहो भगवन् ! नींव, आम्र, जाम्बु, कोसंब, शाली, अंकोल, पीलू, शेलू, शल्यकी, बकुल, बउल, पलाश, करेंज, जीवापुत्र, अरिठा, बहेडा, हरडे भिलामा, जंबर मेरडी, प्रियंगु पूति चारगसण्ड, नपासी, सीसम, अतसी, पुन्नाग, तालवृक्ष, सिवन व अशोक, इन में जो जीव मूलपने उत्पन्न होते हैं वगैरह सब कथन जैसे ताल वृक्ष का कहा वैसे ही कहना यों बावीस वे शतक के दूसरे वर्ग में दश उद्देशे संपूर्ण हुवे. ॥ २२ ॥ २ ॥
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{हुवे.
मोद की, मालती
रायणी घाहडी
4. बावसिवा शतक का दूसरा उद्देशा
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