Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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वग्गो सम्मत्तो ॥ २३ ॥ २॥ () () () () अह भंते ! आयकाय कुहुण कुंदुरुक्क उवेहलियसफासज्जा छत्ता वंसाणिय कुराणं, एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए एवं एत्थवि मूलादिया दस उद्देसगा णिरवसेसं जहा आलबग्गो सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ तइओ वग्गो सम्मत्तो ॥ २३ ॥ ३॥ (!) अह भंते ! पाढामिय वालुंकि महुररसा रायवल्ली पउमा मोढरि दंति चंडीणं, एए. सिणं जे जीवा मूलादिया दस उद्देसगा आल्यवग्गमरिसा, णवरं ओगाहणा जहा
बल्लीणं, सेसं तंचव सेवं भंते ! २ ति चउत्थो वग्गो सम्मत्तो ॥ २३ ॥ ४ ॥ यावत् वीज पने उत्पन्न हुवे यो दशो उद्देशे जैसे आलुके कहे वैसे ही कहना. परंतु अवगाहना ताल वर्ग
जैसे कहना. यह तेवीसवा शतक का दूसरा वर्ग समाप्त हुवा ॥ २३ ॥२॥ . अहो भगवन् ! आयकाय, अनंतकाय, कुहुण, कंदरुक्क, उबेहलिक, सफा, सज्जा, छत्रा, वंशाणिक,
कुरु इन सब अनंतकाय में जो जीव मूलपने उत्पन्न होवे यों मूलादि दश उद्देश आलु वर्ग जैसे कहना.
अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य है यह तेवीसवा शतक का तीसरा उद्देशा समाप्त हुवा ॥ २३ ॥ ३ ॥ १. अहो भगवन् ! पाठामृग, बालुका, मधुररसा, रायवली, पद्मा, मोढरी, दन्ती,चण्डी, इन में मो जीब 17मूलपने उत्पन्न होवे इत्यादि पूर्ववत दश उद्देशे जैसे आलू के कहे वैसे ही कहना परंतु अवगाहना बल
पंचमांगविवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र 480
+4 तेवीमा तक का २-३-४
भार्थ