SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 2559
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ २५२९ वग्गो सम्मत्तो ॥ २३ ॥ २॥ () () () () अह भंते ! आयकाय कुहुण कुंदुरुक्क उवेहलियसफासज्जा छत्ता वंसाणिय कुराणं, एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए एवं एत्थवि मूलादिया दस उद्देसगा णिरवसेसं जहा आलबग्गो सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ तइओ वग्गो सम्मत्तो ॥ २३ ॥ ३॥ (!) अह भंते ! पाढामिय वालुंकि महुररसा रायवल्ली पउमा मोढरि दंति चंडीणं, एए. सिणं जे जीवा मूलादिया दस उद्देसगा आल्यवग्गमरिसा, णवरं ओगाहणा जहा बल्लीणं, सेसं तंचव सेवं भंते ! २ ति चउत्थो वग्गो सम्मत्तो ॥ २३ ॥ ४ ॥ यावत् वीज पने उत्पन्न हुवे यो दशो उद्देशे जैसे आलुके कहे वैसे ही कहना. परंतु अवगाहना ताल वर्ग जैसे कहना. यह तेवीसवा शतक का दूसरा वर्ग समाप्त हुवा ॥ २३ ॥२॥ . अहो भगवन् ! आयकाय, अनंतकाय, कुहुण, कंदरुक्क, उबेहलिक, सफा, सज्जा, छत्रा, वंशाणिक, कुरु इन सब अनंतकाय में जो जीव मूलपने उत्पन्न होवे यों मूलादि दश उद्देश आलु वर्ग जैसे कहना. अहो भगवन् ! आप के वचन सत्य है यह तेवीसवा शतक का तीसरा उद्देशा समाप्त हुवा ॥ २३ ॥ ३ ॥ १. अहो भगवन् ! पाठामृग, बालुका, मधुररसा, रायवली, पद्मा, मोढरी, दन्ती,चण्डी, इन में मो जीब 17मूलपने उत्पन्न होवे इत्यादि पूर्ववत दश उद्देशे जैसे आलू के कहे वैसे ही कहना परंतु अवगाहना बल पंचमांगविवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र 480 +4 तेवीमा तक का २-३-४ भार्थ
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy