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________________ २५२८ अनुवादक-बाल ब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋपिजी + उववजंति ॥ अवहारो तेणं अणंता समए २ अवहीरमाणा २ अणताहि उस्सप्पि णीहिं ओसप्पिणीहि एवइथं कालेणं अवहीरइ णो चेवणं अवहिरिया सिया, ठिई जहण्णणवि उकोसेणवि अंतोमहत्तं, सेसं तंचेव ॥ तेवीसमरस सयस पढमो बग्गो सम्मत्तो ॥ २३ ॥ १॥ . :. . अह भंते ! लोहिणीहवीहथिभागा अस्सकण्णी सीहकपणी सीउट्टी मुसंढीणं एए. सिणं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमति एवं एत्थवि दस उद्देसगा जहेव आल. यग्गे णवरं ओगाहणा तालवग्ग सरिसा सेसं तंचेव, सेवं भंते ! भंतेत्ति ॥ बिईओ अदरख, हलदी, रुरुक, चरिप, जीरा क्षीराविली, किट्टिक, दुकर्ण, कड़, सुमधु, एयलाकी, मधुसिंगिणी, रुहा, रूपमुगंधा, और छदी हुइ उगनेवाली अथवा बीज से उगनेवाली यों इन में जो जीवों मूलपने उत्पन्न होवे यो दश उद्दशे वंश वर्ग जैसे कहना. विशेष में परिणाम जघन्य एक दो तीन उत्कृष्ट संख्यात असंख्यात व अनंत उत्पन्न होवे. उन जीवों के पिंण्ड में से समय २ में अनंतर नीकलते२ अनंत अवसर्पिणी, खाली होवे नहीं. स्थिति जयन्य उत्कृष्ट अंतर्मुहूर्त. और सब कथन वैसे ही कहना. यों तेवीसवे शतक के प्रथम वर्ग में दश उद्देशे संपूर्ण हुवे । २३ ॥१॥ अहो भगवन् ! लोहिणी, हुवी, हूथी, भांग, अम्बकर्णी सिंहकी सीउठी मुपंढी इन में जो जीव मूलपने * प्रकाशक-राजीवहादुर जबासस्वदेश या भावार्थ प्रसादजी गु
SR No.600259
Book TitleAgam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Original Sutra AuthorN/A
AuthorAmolakrushi Maharaj
PublisherRaja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
Publication Year
Total Pages3132
LanguageSanskrit
ClassificationManuscript & agam_bhagwati
File Size50 MB
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