Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सुत्र
भावार्थ
* पंचमाङ्ग विवाह पण्णत्त (भगवती) मृत्र
सेवं भंते ! भंतेत्तिः ॥ पढमत्रगस्त पितिओ उद्देसो सम्मत्तो ॥ १ ॥ २ ॥ एवं खंधेत्रि उद्देसो णतव्यो || पढम वग्गस्स तइओ ॥ १ ॥ ३ ॥ एवं तयाएवि उद्देसो यव्त्रा || पढमत्रग्गस्स चउत्थो || १ || ४ || सालेवि उद्देसो यव्वो । पदम वग्गस्स पंचमो ॥ १ ॥ ५ ॥ पत्रालत्रि उद्देसो भाणियन्त्रो || पढम वग्गस्स छट्ठो ॥ ६ ॥ ६ ॥ पत्तेवि उद्देमो भाणियन्त्रो पदम वग्गस्स सत्तमो ॥ १ ॥ ७ ॥ एए सत्तवि उद्देमा अपरिसं जहा मूले तहा णेयव्वो ॥ एवं पुप्फेवि उद्देसओ णवरं देवो उववज्जइ, जहा उप्पलुद्देसे, चत्तारिलेस्साओ, ओगाहणा जहण्गेणं अंगुलस्स असंयह प्रथन वर्ग का दूसरा उद्देशः संपूर्ण हुआ || १ || २ || ऐसे स्कंध में भी कहना. यह प्रथम वर्ग का तीसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा || १ || ३ || एस टी शालि का उद्देशा विशेषता रहित कहना ॥ १ ॥ ४ ॥ | ऐसे ही शाखा का भी उद्देशा विशेषता रहित कहना || १ || ५ | ऐसे ही कुंपलों का विशेषता रहित [ कहना ।। १ ।। ६ ।। ऐसे ही पत्र का भी कहना || १ || ७ | ऐसे ही पुष्प का उद्देशा कहना परंतु विशे( पता इतनी कि पुष्प में देवताओं आकर भी उत्पन्न होते हैं इसलिये लेश्या चार पाती हैं, जिस से एक {वचन व बहुवचन ऐसे लेश्या के ८० भांगे होते है. भवगाहना जघन्य अंगुल के असंख्यात भाग उत्कृष्ट
इक्कीसवा शतक का पहिला उद्देशा
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