Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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* अनुवादक बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिजी
भावाथा
सिणं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति, एवं एत्थवि मूलदीया दस उद्देसगा जहेत्र सालीणं, णवरं देवो सव्वत्थवि ण उववज्जइ तिणि लस्साओ || सव्वत्थवि छन्नीसं भंगा ॥ ससं तंचे ॥ चउत्थों वग्गो || ४ || इक्कवीन सयरस चउत्थो वग्गो ॥ २१॥ ४ ॥ अह अंत ! इक्खु इक्खु वाडिय वीरण- इक्कडभ-मास सुंव-सत्तवप्त- तिमिरसय- पोरं गनलाणं एएसिणं ज जीवा मूलत्ताए वक्कमंति, एवं जहेब स वग्गो तहेव त्यत्रि मूलादीया दस उद्देसगा. वरं खधुदेंसे देवो उववजंति; चत्तारि लेस्साओ पण्णत्ताओं, सेसं तंत्र ॥ पंचमो वग्गा सम्मत्तां ॥ १२ ॥ ५ ॥
स्थान में उत्पन्न होने वगैरह जैने शाली का कहा वैसे ही कहना. विशेष में यहां देवता सब स्थान उत्पन्न नहीं होते हैं इसलिये चार लेश्या नहीं कहना. परंतु तीन लेश्या के ३० भांगे कहना. यह चौथा वर्ग (समाप्त हुआ. यह इक्कीसवरा शतक का चौथा उद्देशा संपूर्ण हु| ॥ २१ ॥ ४ ॥
'अहो भगवन् ! इक्षु, इक्षुवाडिया, इक्कड, भाषक, सप्त पर्ण, शत, पोरंग और नल इन में जो जीव मूलपने उत्पन्न होते हैं वगेरह वंश वर्ग जैसे दश उद्देशे कहना. विशेष में स्कंध में देव उत्पन्न होने से वहां चार लेश्याओं के ८० भांगे पाते हैं. यह पांचवा वर्ग समाप्त हुवा यह इक्कीसवा शतक का पांचवा | उद्देशा संपूर्ण हुना ॥ २१ ॥ ५ ॥
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* प्रकाशक-राजाबहादुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रमादजी
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