Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
मावार्थ
488+ पंचमांग विवाह पण्णत्ति ( भगवती ) सूत्र +
हिंतो उबवजंति ॥ एवं मुलादी या दस उद्देसगा भाणियव्त्रा जहेव सालीणं णिरव सेसं तहेव ॥ वितिओ वग्गो सम्मत्तो ॥ २ ॥ एक्कवसिय वितिओ वग्गो ॥ २१ ॥ २ ॥
सयस्सय
अह भंते ! अयसि कुसुंभ-कोद्दव- कंगु-रालग वराग-कोहु-सासण - सरिसब मूलग वीयाणं एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति, तेणं भंते ! जीवा कओहिंतो उवत्रति एवं एत्थव मूलादीया दस उद्देसा जहेव सालीणं णिरवसेसं तत्र भाणि - यन्त्रं ॥ तइओ वग्गो सम्मन्तो ॥ २१ ॥ ३ ॥
अह भंते ! वंस वेणु-कणग- कक्कावंस - चारुवंस दंडा- कंडा - बेलुया कल्लाणीणं एए निरवशेष कहना. यह दूसरा वर्ग समाप्त हुवा. यह इक्वीसवा शतक का दूसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा ||२१|२॥ } अहो भगवन्! अलसी, कसुंचे, कांद्रव, कांगणी, राल, वराग, कोठी, सासन, और सरिसव व मूलवीज {इन में जो जीव मूलपने उत्पन्न होते हैं वे जीवों कहां से उत्पन्न होते हैं ? ऐसे ही यहां पर मूलादि दश उद्देशे जैसे शाली के कहे वैसे ही कहना. यह तीसरा वर्ग समाप्त हुवा. यह इक्कीसवा शतक का तीसरा उद्देशा संपूर्ण हुवा || २१ ॥ ३ ॥
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भद्दो भगवन् ! वांश, वेणू, धतूरा, दण्ड, कण्ठ, बेलुक और कल्याणी इन में जो जीव मूलादि दश
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48+ इक्कीसवा शतक का २-३-४ उद्देशा 49+
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