Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अमोलक ऋषिनी +
एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए बकमंति, एवं एत्मवि दस उद्देसगा, जहेब सवग्गों ॥ सत्तमो वग्गो ॥ ७॥ इक्कीसमस्स सयस्स सत्तमो उद्देसो ॥ २१ ॥७॥ अह भंते । तुलसी • कण्हदराल • फण्णेजा - भूतणातिंचोराजीरादमणामरुयाई दीवर सयपुप्फाणं, एएसिणं जे जीवा मूलत्ताए वक्कमंति, एत्थवि दस उद्देसगा णिरवसेसं
जहा वंसाणं ॥ अट्ठमो वग्गो सम्मत्तो ॥ ८॥ एएसु अट्ठवग्गेसु असीति उद्देसगा } भवंति ॥ एकवीसइमं सयं सम्मत्तं ॥ २१॥ ऐसे ही यहां पर भी दश उद्देशे जैसे वंश पर्ग के कहे वैसे ही कहना. यह सातवा वर्ग समाप्त हुवा... इसवीसवा शतक का सातवा उद्देशा संपूर्ण हुवा ॥ २१ ॥७॥ १ अहो भगवन् ! तुलसी, कृष्ण, दराल, फणश, भूतनाति, चोरा, जीरा, दमना, मरुया और इन्दीवर शत पुष्प इन में जो जीव आकर मूलपने उत्पन्न होते हैं वगैरह यहां पर वंश वर्ग जैसे दश उद्देशे कहना. यह आठवा वर्ग समाप्त हुवा. यह इसीसवा शतक का आठवा उदशा संपूर्ण हुबा. यह इक्कीसवा शतक समाप्त हुवा ॥ २१॥
• प्रकाशक राजाबहादुर लाला मुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी *
भावाथे