Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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पडिणियत्तइत्ता इहमागच्छइ; मागच्छइत्ता इहं चेइयाइं वंदइ विजाचारणस्सणं गोयमा ! तिरियं एवइए गतिविसए पण्णत्ते ॥ ४ ॥ विजाचारणस्सणं भंते ! उर्दू केवइए गतिविसए पण्णत्ते ? गोयमा ! सेणं इओ एगेणं उप्पाएणं णंदणवणे समोसरणं करेइ, करेइत्ता तहिं चेइयाई वंदइ,वंदइत्ता वितिएणं उप्पाएणं पंडगवणे समो. सरणं करेइ २ त्ता, तहिं चेइयाई वंदइ, वंदइत्ता तओ पडिणियत्तइ २ त्ता इहमागच्छइ २ त्ता इहं चेइयाइं वंदइ, विजाचारणस्सणं गोयमा ! उट्टे एवइयं गइविसए
५० ॥ ५ ॥ सेणं तस्स ठाणस्स अणालोइयपडिकंते कालं करेइ णस्थितस्स आरा
विश्राम कर वहां पर भी उक्त रीति स चैसवंदन करकं वहां से पीछा यहां पर अपने स्थान आवे, और में भावार्थ
यहां पर भी उक्त रीति से चैत्य वंदन करे. अहो गौतम ! विद्याचारण का तीर्छा इतना विषय कहा है। ॥ ४ ॥ अहो भगवन् ! विद्याचारणका ऊर्ध कितना विषय कहा है ? अहो गौतम ! विद्याचारण एक उपपात में यहां से उडकर मेरु पर्वत के नंदनवन में विश्राम लचे वहां भी ज्ञानी के गुणका गुणानुवाद
करे. वहां से दूसरे उपपात में पंडगवन में समवसरण करे, वहां पर भी ज्ञानी के गुणों का ॐ गुणानुवाद करे और वहां से पीछा अपने स्थान आवे. अहो गौतम ! विद्याचारण का ऊर्ध्व गमन का, | इसना विषय कहा है ॥ ५॥ वह उस स्थान की आलोचना प्रतिक्रपण किये बिना काल कर जाये तो
+ पंचमांग विवाह पण्णति ( भगवती ) सूत्र
480% वीसवा शतक का नवधा उद्देशा 4.