Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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णिरुवकमाउयावि ॥ एवं जाव थणियकुमारा ॥ पुढवीकाइया जहा जीवा । एवं है । जाव मणुस्सा । वाणमंतर जोइस वेमाणिया जहा णेरइया ॥ २ ॥ णेरइयाणं भंते ! किं आउवक्कमेणं उववजंति, परोवक्कमेणं उववजंति, णिरुवक्कमेणं उववजंति ? गोयमा आतोबक्कमेणवि उववजंति, परोवक्कमेणवि उववजंति, णिरुवक्कमेणवि उववज्जति, एवं
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अहो भगवन् ! नारकी क्या सोपक्रमआयुष्य वाले हैं या निरुपक्रम आयुष्य वाले हैं. ? अहो गौतम ! भावार्थ
नारकी सोपक्रम आयुष्यवाले नहीं है परंतु निरुपक्रम आयुष्य वाले हैं. क्योंकी जितना नारकी का आयुष्य है उतना ही आयुष्य वे भोगते हैं. ऐसे ही असुरकुमार यावत् स्तनित कुमार का जानना. वे सोपक्रम आयुष्यवाले नहीं हैं; परंतु निरुपक्रम आयुष्य वाले हैं. पृथ्वीकाया का समुच्चय जीव जैसे कहना. ऐसे ही अप्काया यावत् मनुष्य का जानना. वाणव्यंतर ज्योतिषी व वैमानिक का नारकी जैसी कहनां. ॥ २॥ अहो भगवन् ! क्या नारकी सयं ही आयुष्य के उपक्रम मे मरकर नारकी में उत्पन्न
होवे, परकृतमरण मे मरकर नारकी में उत्पन्न होवे अथवा उपक्रम रहित मरकर नारकी में उत्पन्न हो ? at अहो गौतम ! अपने हाथ से अपना आयुष्य का छेदनकर नारकी में उत्पन्न होवे जैसे श्रेणिक राजा" + विषखाकर मरा, अन्य से मराया हुवा मरे कूणिक राजा की तरह और उपक्रमविना भी मरकर नरक में ।
488 पंचांग विवाहपण्णत्ति ( भगवती ) मत्र
वीसवा शतक का दशवा उद्दर