Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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सूत्र
भावार्थ
अनुवादक बालब्रह्मचारीमुनि श्री अमोलक ऋषिजी
उववज्जति, णो परप्पओगेणं उववज्जति ॥ एवं जाव वेमाणिया ॥ एवं दंडओवि ॥८॥ रइयाणं भंते ! किं कतिसंचिया अकतिसंचिया अवत्तव्यगसंचिया ? गोयमा ! रइया कतिसंचियावि, अकतिसंचियावि, अवतन्त्र संचियावि ॥ से केणट्टेणं जाव अवत्तव्वग संचियावि ? गोयमा ! जेणं णेरड्या संखेजएणं पवेसणएणं पविसंति तेणं णेरइया कतिसंचिया, जेणं णेरड्या संखेजएणं पवेसणएणं पविसंति तेणं रइया अकति संचिया, जेणं णेरइया एक्कएण पत्रेसणएणं पविसंति तेणं णेरइया
के प्रयोग से उत्पन्न होत्रे परंतु पर प्रयोग से उत्पन्न होवे नहीं. ऐसे ही वैमानिक पर्यंत कहना - और वैसे ही (उद्वर्तना दंडक भी कहना || ८ || अहो भगवन् ! क्या नारकी कतिपय संचित (गिनती के ) हैं, अकतिपय संचित (बिना गिनती के ) हैं या अवक्तव्य ( एक ही ) है ? अहो गौतम ! नारकी तीनों प्रकार के हैं. अो भगवन् ! किस कारन से ऐसा कहा गया यावत् अवक्तव्य हैं ? संख्यात प्रवेशन से प्रवेश करते हैं वे कति संचित हैं जो असंख्यात प्रवेशन से (संचित और जो एक प्रवेश से प्रवेश करते हैं वे अवक्तव्य संचित इस से
अहो गौतम ! जो नारकी
प्रवेश करते हैं वे अकति
अहो गौतम ! ऐसा कहा
गया है यावत् अवक्तव्य संचित हैं. ऐतेही स्वनितकुमार पर्यंत कहना. पृथ्वी काया कति संचित व अवक्तव्य
* मकशिक- राजांवांदुर लाला सुखदेवसहायजी ज्वालाप्रसादजी
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