Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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जियावि ॥ एवं जाव थणियकुमारा ॥ पुढवीकाइयाणे पुच्छा ? गोयमा । पुढवी । काइया णो छक्क समज्जिया, णो णोछक्कसमजिया, णो लक्केणय णो छकंणय सम. जिया ३, छक्केहिय समजियावि, छक्केहिय णो छक्केणय समजियावि ॥ से केणट्रेणं भंते ! जाव समजियावि ? गोयमा ! जेणं पुढवीकाइया णेगेहिं छक्केहिं पवेसणगं पविसंति तेणं पुढवीकाइया छक्केहिं समजिया, जेणं पुढीकाइया णेगेहिं छक्कएहि अण्णेणय जहण्णेणं एक्वणवा दोहिंवा तिहिंवा उक्कोसेणं पंचएणं पवेसणएणं पविसंति ॥
तेणं पुढवीकाइया छक्केहिय णो छक्केणय समजिया; से तेगडेणं जाव समजियावि भावार्थ कुमार पर्यंत कहता पृथ्वी काया की पृच्छा ? अहो. गौतम : पृथ्वी काया छक्क ममाजित नहीं है, नो छक्क
सपानित भी नहीं है, छक्क नो छान भी समार्जित भी नहीं है परंतु बहुत छक्क से और बहुत छक्क नो छक से समानित हैं. अहो भगवन्! किस कारन से ऐसा कहा गया यावत् समार्जिन हैं? अहो गौतम! जोई।
पृथ्वी काया अनेक छस मे प्रवेश करते हैं वे बहुत छक्क मे समाजित हैं और जो पृथ्वी काया बहुत छ 126/मे प्रवेश करत हैं और उपर जघन्य एक दो तीन यावत् पांच से प्रवेश करते हैं वे बहुत छक्क व नो छक्क से
समाजिक हैं. ऐसेही बनस्पति काया पर्यंत कहना. इन्द्रिय से वैमानिक पर्यंत और सिद्ध वगैरह सब नारकी
पंचमांग विवाह पण्णति (भगवती) सत्र
वीसवा शतक का दशम उद्देशा
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