Book Title: Agam 05 Ang 05 Bhagvati Vyakhya Prajnapti Sutra Sthanakvasi
Author(s): Amolakrushi Maharaj
Publisher: Raja Bahaddurlal Sukhdevsahayji Jwalaprasadji Johari
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* अनुवादक-बालब्रह्मचारी मुनि श्री अम लक ऋषिनी
जियावि? गोयमा ! जेणं पुढवीकाइया णेगेहि वारसएहिय पवेसणगं पविसंति तेणं पुढवीकाइया वारमएहिं समजिया ॥ जेणं पुढाकाइया णेगेहिं बारसएहि अण्णणय जहणणं एकेणवा दोहिया तिहिंवा उकावणं एकारतएणय पवेसणएणं परिसंत तेणं पुढवीकाइया बारमएहिय णो वारसएणय मजिया से तेणट्रेणं जाव समजियावि ॥ एवं जाव वणस्सइकाइया॥वेइंदिया जाब सिद्धा जहा णेरझ्या ।। एएसिणं भंते! णेरइयाणं बारस्स समजियाणं सव्वसि अपाबहुगं जहा छकारमजियाणं णवरं बारसाभिलावो ॥ संस तंत्र ॥ १२ ॥ जरइयाणं भंत ! कि चुलपीति समजिया णो चुल
सीति समजिया, चुलसीतिएय णो चुलसीतिएय समजिया चुलसीतिहिय समजिया अनेक बारह में प्रांशा करते हैं व पृथ्वीकाया अनेक वारद समार्जित हैं और जो पृथीकाया अनेक वारह से प्रवेश करते हैं और उपर घन्य एक दो नीन उरष्ट भयारह प्रवेशा में प्रवेश करते हैं वे अक । बारह व नोव रह समानित है. इस मे ओ गीतम! यावत् समाजित हैं. ऐसे ही वनस्पति काया काना जानना. इन्द्रिय सद्धि पर्या नारकी जो कहना. इन बारह की अलगावहुन छक्क जैसे कहना. परंतु यहां छ के स्थान बारह कहना ॥ १२ ॥ यह बारह आश्री कहा अब चौरासी आश्री कहते हैं. अहो।
प्रकाशक राजाबहादुर लाला सुखदेवमहायजी ज्वालाप्रसादजी*
भावार्थ